समस्त तिथियो मे एकादशी तिथि का विशेष धार्मिक महत्त्व है। हर महीने दो 'एकादशी' आती है। हर 'पूर्णिमा' और 'अमावस्या' के दस दिन बाद 'एकादशी' तिथि आती है याने कि एक शुक्ल पक्ष मे और एक कृष्ण पक्ष मे आती है। इस प्रकार एक महीने मे दो बार और बारह महीनो मे 24 एकादशिया आती है और जिस साल अधिक मास आता है उस बार दो एकादशियां और आ जाने से इनकी सख्या 26 हो जाती है। एकादशी का व्रत बहुत पुण्य फ़लदायी होता है। इस व्रत को करने से जाने अनजाने मे किये गये पापों से मुक्ति तो मिलती ही है साथ मे जितने भी प्रकार के दान होते है जैसे स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्यादान तथा तपस्या, तीर्थयात्रा एवं अश्वमेध आदि यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है उतना ही एकादशी व्रत को करने से भी प्राप्त होता है।
श्रध्दा और भक्ति भाव के साथ एकादशी व्रत करना चाहिये। प्रात: काल नित्य क्रियाओ से निवृत्त होकर स्नानादि करके उपवास शुरु करना चाहिये। इस बात का खास ध्यान रहे कि दिन भर प्रभु के नाम की ही चिन्तन और मनन किया जाना चाहिये। सूर्य अस्त के उपरान्त हरि वन्दना करके भगवान को भोग लगाने के पश्चात अपना व्रत खोलना चाहिये। एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा हैं और एकादशी का विशेष नाम ‘नन्दा’ भी है।
यदि एकादशी तिथि सोमवार को पडे तो 'क्रकच योग' तथा 'दग्ध योग' बनाती है जो समस्त शुभ कार्यों के लिये उत्तम नही मानी जाती। इसके अलावा रविवार तथा मंगलवार को एकादशी तिथि आने पर मृत्युदा तथा शुक्रवार के दिन पडने से सिद्धिदायक होती है। एकादशी तिथि की दिशा आग्नेय है। भविष्य पुराण के अनुसार एकादशी को विश्वेदेवा की पूजा करने से धन-धान्य, सन्तति, मान सम्मान और समस्त प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। प्रत्येक माह में दो एकादशी आती है। जिनके नाम अलग-अलग है जो इस प्रकार है:-
वर्ष भर की एकादशियां
कामदा एकादशी चैत्र शुक्ल
वरूथिनी एकादशी वैशाख कृष्ण
मोहिनी एकादशी वैशाख शुक्ल
अपरा एकादशी ज्येष्ठ कृष्ण
निर्जला एकादशी ज्येष्ठ शुक्ल
योगिनी एकादशी आषाढ़ कृष्ण
देवशयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल
कामिका एकादशी श्रावण कृष्ण
पवित्रा एकादशी श्रावण शुक्ल
अजा एकादशी भाद्रपद कृष्ण
परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद शुक्ल
इंदिरा एकादशी आश्विन कृष्ण
पापांकुशा एकादशी आश्विन शुक्ल
रमा एकादशी कार्तिक कृष्ण
देव प्रबोधिनी कार्तिक शुक्ल
उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण
मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष शुक्ल
सफला एकादशी पौष कृष्ण
पुत्रदा एकादशी पौष शुक्ल
षटतिला एकादशी माघ कृष्ण
जया एकादशी माघ शुक्ल
विजया एकादशी फाल्गुन कृष्ण
आमलकी एकादशी फाल्गुन शुक्ल
पापमोचिनी एकादशी चैत्र कृष्ण
पद्मिनी एकादशी अधिकमास शुक्ल
परमा एकादशी अधिकमास कृष्ण
डॉ. वेदप्रकाश ध्यानी
www.starstell.com
श्रध्दा और भक्ति भाव के साथ एकादशी व्रत करना चाहिये। प्रात: काल नित्य क्रियाओ से निवृत्त होकर स्नानादि करके उपवास शुरु करना चाहिये। इस बात का खास ध्यान रहे कि दिन भर प्रभु के नाम की ही चिन्तन और मनन किया जाना चाहिये। सूर्य अस्त के उपरान्त हरि वन्दना करके भगवान को भोग लगाने के पश्चात अपना व्रत खोलना चाहिये। एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा हैं और एकादशी का विशेष नाम ‘नन्दा’ भी है।
यदि एकादशी तिथि सोमवार को पडे तो 'क्रकच योग' तथा 'दग्ध योग' बनाती है जो समस्त शुभ कार्यों के लिये उत्तम नही मानी जाती। इसके अलावा रविवार तथा मंगलवार को एकादशी तिथि आने पर मृत्युदा तथा शुक्रवार के दिन पडने से सिद्धिदायक होती है। एकादशी तिथि की दिशा आग्नेय है। भविष्य पुराण के अनुसार एकादशी को विश्वेदेवा की पूजा करने से धन-धान्य, सन्तति, मान सम्मान और समस्त प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। प्रत्येक माह में दो एकादशी आती है। जिनके नाम अलग-अलग है जो इस प्रकार है:-
वर्ष भर की एकादशियां
कामदा एकादशी चैत्र शुक्ल
वरूथिनी एकादशी वैशाख कृष्ण
मोहिनी एकादशी वैशाख शुक्ल
अपरा एकादशी ज्येष्ठ कृष्ण
निर्जला एकादशी ज्येष्ठ शुक्ल
योगिनी एकादशी आषाढ़ कृष्ण
देवशयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल
कामिका एकादशी श्रावण कृष्ण
पवित्रा एकादशी श्रावण शुक्ल
अजा एकादशी भाद्रपद कृष्ण
परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद शुक्ल
इंदिरा एकादशी आश्विन कृष्ण
पापांकुशा एकादशी आश्विन शुक्ल
रमा एकादशी कार्तिक कृष्ण
देव प्रबोधिनी कार्तिक शुक्ल
उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण
मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष शुक्ल
सफला एकादशी पौष कृष्ण
पुत्रदा एकादशी पौष शुक्ल
षटतिला एकादशी माघ कृष्ण
जया एकादशी माघ शुक्ल
विजया एकादशी फाल्गुन कृष्ण
आमलकी एकादशी फाल्गुन शुक्ल
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3 comments :
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